एक रात की बात बताऊँ
ठण्ड से बदन मेरा काँपा
और आंख गयी खुल
दायीं ओर देखा तो चौंक उठा
मेरी चादर लपेटे येह कौन सो रही है
कोई भूत –
प्रेत या कोई चुड़ैल
तो नहीं
पास जा के देखा तो पाया …येह तो वही है
जो मुझे तीस सालों से दिन भर सही – गलत सीखा रही है
यहाँ जाओ
, वहां नहीं
येह खाओ ,
वह नहीं
बिल पे किया
, ठीक दिया ना
अभी तक TV ही देख रहे हो
सब्ज़ी कौन लाएगा , मछली बासी क्यों है
मैं उसकी शिकायतें लिखते थक जाऊं
पर वह करते नहीं थकती कभी
long playing record की तरह …चलती जाये
देखो अभी कितनी शांति से सो रही है
कितनी शांति है घर में
येह ऐसे ही क्यों नहीं रहती हमेशा
शांत से चुपचाप लेटी हुई
ज़िन्दगी गुलज़ार होती अगर वह ऐसी होती
पर हमारी किस्मत ऐसी कहाँ
येह तो ट्रेजेडी फिल्म का छोटा सा कमर्शियल ब्रेक है
तमाशा और तकलीफ कभी कम नहीं होगी
अक्सर गाने को दिल चाहता है
सारे नियम तोड़ दो, नियम से चलना छोड़ दो
इन्किलाब ज़िंदाबाद, इन्किलाब ज़िंदाबाद.
पर फिर सोचता हूँ , अगर कल तुम ना
होगी
तो मेरी सुबह सुबह ना होगी
वह चाय की गरम प्याली में
ना ताज़गी होगी ना महक
मेरे अखबार पड़ते पड़ते
तुम पौधों को प्यार से
पानी छिड़कती और हर रोज़
एक फूल गमले से उठा के
भगवन के समीप रख देती
हर चीज़ सही जगह पे कैसे
रख देती हो तुम
साबुन ,
Surf, Shampoo
ख़तम होने से पहले ही
घर में उनका stock रख लेतीहो तुम
तुम्हारे खाने की क्या तारीफ करूँ
हर प्रकार के व्यंजन
इतने प्यार से बनाती हो
गर्मी में पसीने में लतपत
घंटों रसोई में अकेले टुक टुक करती लगी रहती हो
पर खाने में कैसी मिठास भर देती हो तुम
जादू है तेरे हाथों में
जो छु दे तू खाना लज़ीज़ कर देती हो तुम
और अब तो आलू के परांठे भी बना लेती हो तुम
क्या हो तुम
…सोचता रहता और मुस्कुराता हूँ मैं.
तुम्हारा दिल सही जगह पे होगा ज़रूर
और उस दिल में धरड़कन भी सही होगी
वरना हर किसी को सही वक्त पे तन्खा कैसे दे देती हो तुम
किसी को भूखा घर से ना जाने देती हो तुम
दिवाली पे सबको हाथ खोलके प्यारसे बक्शीश देना
कभी भी येह ना सोचना कहीं ज़्यादा तो नहीं दे दिया ?
हर दवाई के बारे में जानती हो तुम
कब कैसे खानी है , वह भी जानती हो तुम
किसी डॉक्टर या सर्जन से कम नहीं हो तुम
मैं भूल जाऊं पर तुम नहीं भूलती
मेरे माता-पिता की बरसी पे
फूलों की माला उनकी तस्वीरों पे
हर साल जाने कैसे पहना देती हो तुम
इंसान को मानती हो
पूजा करती हो बहुत ही कम
इंसानियत
, सच्चाईऔर स्वाभिमान को
कुछ ज़्यादा ही मानती हो तुम .
बेटी की परवरिश में
तुम्हारा हाथ कण कण में दीखता है
ऊँगली पकड़ के तुमने उसको आगे बढ़ाया
स्कूल , कॉलेज की परीक्षाओं
से आगे
उसकी शादी तक का हर पल और हर सफर
तुम्हने प्यार से , फूँक फूँक के
उसको आगे बढ़ाया है तुमने
पीछे मुरड़के देखता हूँ बेटी को
तुम्हारी परछाई और छाप पाता हूँ मैं
सोचता हूँ तुम्हारे साथ एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल लूँ
मैं सेल्स मैनेजर और तुम उसकी इवेंट मैनेजर
मैं गलतियां करुँ, और तुम सुधर दो , सवार दो
कौन कम्बख्त कहता है की सारे नियम तोड़ दो
और नियम पे चलना छोर्ड दो
बेफकूफहै
, सबसे बड़ा इडियट है वह
सच कहती हो तुम जब मुझे तुम गधा बोलती हो
गधे को गधा नहीं तो और क्या कहोगी तुम .
कोई भी काम तुम्हारे लिए छोटा नहीं
कोईभी काम तुम्हारे लिए मुश्किल नहीं
अपनी माँ की बिमारी में क्या क्या ना किया तुम्हने
Nurses को पैसे दिए और अक्सर काम खुद किया
मुखाग्नि भी तुम्हीने किया
कमाल की हो तुम!
मैं बैठा अपना काम करता रहता हूँ
और तुम चुपके से मेरे गुसलखाने घुस जाती हो
बिना किसी घृणा के वह सब साफ़ कर देती हो
जो मैल मैं अक्सर अनजाने में छोड़ आता हूँ .
मैं दुनिया की सैर करता हूँ
कभी इस देश
, तो कभी उस
देश के भी कई बार चक्कर लगाता हूँ मैं
तुम अकेले घर पे मेरा इंतज़ार करती हो
कभी नहीं बोलती हो
चलूँ क्या तुम्हारे संग?
मैं भी देखना चाहती हूँ
पर हर ख्वाइश का गला घोंट लेती हो तुम
पता नहीं किस मिट्टी की बानी हो तुम?
यह क्या हो गया हैआज मुझे
मैं येह सब क्यों बोल रहा हूँ …
हाँ तुम्हने उस दिन जब बोली मुझे
अगर तुम नहीं रहोगे तो मेरा क्या होगा
अरे पगली
, तेरे बिना मेरा क्या होगा
यह ना सोचा तूने?
बहुत अकेला
….
बहुत बेबस
….
कैसे कहूँ की तुम
मेरी Wife नहीं ज़िन्दगी की WiFi हो
तुम नहीं तो सब थप …सब बंद …
यह सब सोचते सोचते मैं उसकी तरफ मुड़ गया
अपने हाथको उसके ऊप ररख दिया मैंने
हलके से उसको जकड लिया मैंने
जाने ना दूंगा तुझे!
अगर तू चुड़ैल है , तो मैं भी बेताल हूँ !
खूब खिलेगी जोड़ी अपनी
इस जहाँ में और फिर उस मकाम पे.
SS
No comments:
Post a Comment