ठहाका
मारके हांसे हुए
दिन
नहीं महीने नहीं साल बीत गए
सोचता
हूँ कब एक बार फिर
दिल खोल के एक बार हँसूंगा
खुशी
के मारे न समाऊंगा
हँसते
हँसते मिट्टी में लेट जाऊंगा
लोग
मुझे पागल सोचेंगे
जो
चाहे सोचें …मैं तो हँसूंगा
आसमान
की ओर हाथों को उठाँऊंगा
गले
से खुल के आवाज़ निकालूंगा
आंखों
से जब तक आंसूं न निकल जाएं
हंसी
को रुकने न दूंगा
पर
ऐसा कब होगा
इस
दुःख भरे माहौल में
खुशी
जाने कहाँ खो गयी है
ढूंढूंगा
उसको मैं ज़रूर
और
जब वो मिल जाएगी
बाहों
में जकड लूँगा उसको मैं
जाने
न दूंगा इस बार
बड़ी
मुश्किल से मिली हो
अब
न छोडूंगा तुझे
मगर
कब वो दिन आएगा
सोचता
हूँ वो सुबह कभी तो आएगी
वो
सुबह कभी न जायेगी
जाने
कितने दिन बीत गए
यारों
की महफ़िल सजे हुए
दिन
नहीं महीने नहीं साल बीत गए
सोचता
हूँ सबको एक बार बुला ही लूँ
अकेलेपन
की सर्दी, दोस्ती की गर्मी
को
देखते ही दूर भाग जाएगी
मिलेंगे
जब यार पांच
तो
बात ही कुछ और होगी
गालियों
की बौछार होगी
बेशर्मी
की हद्द पार होगी
यादें
पूरानी फिर जाग उठेंगी
बचपन
से पचपन का सफर
यादों
की कश्ती में होगी पार
पर
ऐसा कब होगा यार
इस
अकेले माहौल में
दोस्त
जाने कहाँ खो गए हैं
ढुंडुंगा
उनको मैं ज़रूर
मिलेंगे
तो जाने न दूंगा इस बार
दोस्तों
का हाथ थाम लूँगा बार बार
कुछ
लम्हे और रहो ना मेरे साथ यार
जाने
फिर कब होगी मुलाकात
जाने
ना दूंगा इस बार
बड़ी
मुश्किल से मिले हो
अब
ना छोडूंगा
मगर
कब वो दिन आएगा
सोचता
हूँ वो सुबह कभी तो आएगी
वो
सुबह कभी ना जायेगी
कितने
दिन बीत गए
किसी
सफर में निकले हुए
दिन
नहीं महीने नहीं साल बीत गए
सोचता
हूँ एक बार हिम्मत कर निकल जाऊं
मंज़िल
कोई भी कहीं भी क्यों ना हो
सिर्फ
आगे बढ़ता ही जाऊं
हवाई
जहाज़ की किसको पड़ी है
जाने
के लिए तो टांगा भी काफी है
वरना
आज भी इन टांगों में बड़ी ताकत है
ये
तो बस चलते जाएँ चलते जाएँ
कौन
सी डगर से गुज़रते
कौन
से शहर से निकलते
अब
आगे ही आगे चलते जाएँ
रुकना
तो एकदम नामंज़ूर है
ज़िन्दगी
चलने का ही तो नाम है
पहाड़ों
के रास्ते
नदियों
के किनारे
जंगलों
के बीच से
रेत
के तूफ़ान से
गुज़रते
जाएँ
सिर्फ
इस सुनसान-पागल शहर से दूर निकल जाऊं
पर
ऐसा कब होगा
इस
रुके हुए माहौल में
दूर
का सफर कहीं खो गया है शायद
ढुंडुंगा
किताबों में नक्शों मैं ज़रूर
चल
पड़ा तो पीछे ना मुड़ के देखूंगा इस बार
सफर
में चाहे जितनी भी हो तकलीफ
उफ़
तक ना करूँगा इस बार
बड़ी
मुश्किल से निकला हूँ
अब
ना लौटूंगा इस बार
मगर
कब वो दिन आएगा
जब
मैं निकलूंगा घर के बाहर
सोचता
हूँ वो सुबह कभी तो आएगी
वो
सुबह कभी ना जायेगी
शायद
कुछ ज़िन्दगी से ज़्यादा ही मांग बैठा हूँ
रूठी
है सालों से
थोड़ी
गूँगी हो गयी है
थोड़ी
बेहरी हो गयी है
थोड़ी
बेरहम हो गयी है
तो
फिर ज़्यादा नहीं, छोटी छोटी सी ख्वाईशें हैं
मांग
लूँ तुझसे एक बार
देखूं
अपनी बेटी को घर में फिर एक बार
आयें
बेहेन- भाई- रिश्तेदार फिर एक बार
कौन
जाने फिर कब मुलाकात हो इसके बाद
देखूं
दुर्गा माँ की प्रतिमा को आँखों के सामने
नहीं
हो डिजिटल अंजलि फिर एक बार
ढाक
की गूँज सुनूं फिर एक बार
भोग
सब लोगों के साथ खाऊं एक बार
बारिश
में एक बार फिर बिन छतरी के निकल जाऊं
गीली
मिट्टी में पड़ी फुटबॉल को एक किक लगाऊं ज़ोरदार
जिन
दोस्तों को हर रोज़ सुबह व्हाट्सप्प पे मैसेज करता हूँ
उनको
आमने-सामने पाऊं और उनसे पूछूं हाल
कैसे
हो दोस्त, अच्छा लगा तुमसे मिल के
किसी
को अगर कभी बुरा-भला कह दिया या दुःख दिया
जाऊं
उनके समीप एक बार
जोड़
के हाथ, दिल से माँगूँ माफ़ी बार बार
ज़िन्दगी
तू रूठी है
प्यार
करूँगा तुझे इतना इस बार
भागूंगा
तेरे पीछे पीछे
अपनी
मायावी मंज़िल से मुँह मोड़ लूँगा
जो
चीजें सच्ची खुशी दे
उनको
तलाशूंगा इस बार
पर
यह सब क्या हो पायेगा
क्या
सब दिल में अरमान बनके दफ़न हो जायेंगे
वो
सुबह क्या कभी आएगी
एक
अंदर से हलकी सी आवाज़ आ रही है
कह
रही है, हाँ होगा …आज नहीं तो कल
और
जब वो सुहानी सूबह होगी
जाने
ना दूंगा इस बार
जकड
के, पकड़ के, बाँध के, सवाँर के
प्यार
के धागो में लपेट के
रखूँगा
अपने पास
वो सूबह कभी ना जायेगी
SS
Too Good Sir, every one is must be having same wish and wishlist in there mind. The only Pray to God to kill this Covid / corona from World.
ReplyDeleteवो सुबह जल्द ही आएगी।
ReplyDeleteNever knew your expertise in Hindi. Very touching. Super expression of the feelings, most of us are going through same emotions. Great.
ReplyDeleteसुप्रभात सर । वह सुबह, वो दिन जरूर आएगा ।
ReplyDeleteमन में है विश्वास पुरा है विश्वास, हम फिर एक बार सबसे मिलेंगे और खूब हंसेंगे, रोएंगे, गालियां देंगे और पार्टी भी करेंगे। है प्रभु जगन्नाथ वो दिन जल्दी लाने में हमारी सहायता करे और अपने बचोंको इस कोरोंना रूपी दानव से रक्षा करें।
We Shall Overcome.
ReplyDeleteमन में हैं विश्वाश
बहुत भावनात्मक! सभी को बहुत कुछ याद दिला दिया होगा!
ReplyDeleteवह सुबह तो आयेगी, जल्दी ही आयेगी!
अति सुंदर वर्णन उन सभी भावनाओं का जो कुछ अरसे से सबके मन में कहीं छुपी बैठी हैं ।
ReplyDeleteआपका ये हिंदी कवि वाला रूप पहले नहीं देखा Sir
Amazing stuff
https://youtu.be/ue-hEmMyMvc
ReplyDeleteवाह साहब वाह । क्या खूब फरमाया है । इस कमबख्त बीमारी ने कुछ ऐसा कहर बरपाया जैसे कि सारी दुनिया थम सी गई हो। फिर भी उम्मीद है, उम्मीद पर दुनिया कायम है। वो पल, वो लम्हे शीघ्र ही लौट आऐंगे। यद्यपि समय की दूरी बेचैनी बढा गई, पर शायद प्रकृति भी मज़बूर रही होगी। वो विशाल समुद्र तट, वो शांत पहाड एवं गर्जन करते झरने, वो हरे भरे जंगल जिनमे कलरव करते पक्षी। वे पुराने पल लौट आएं, ऐसी आशा एवं प्रार्थना है।
ReplyDeleteYe Wakt bhi Gujar Jayega....
ReplyDeleteVery Nice
ReplyDeleteAwesome Sibesh. Your words help many of us expresss our sentiments.
ReplyDeleteAnd now poetry. Wow!
Stay blessed!
सुहानी सुबह आयेगी और रहेगी
ReplyDeleteप्रणाम , विश्वास पे दुनिया कायम है । इस दौरान कुछ ऐसे काम भी हुए जिनसे हमें बहुत आराम हुआ । पत्नी के यह बोलना की आफिस में करते क्या हो आप का जाबाब मिल गया । अपने इस बात का जाबाब भी मिला कि दिन भर घर पे करती क्या हो 😂🤣 । सब के मर्म का ज्ञान हुआ । पकड़े रहना छोड़ना नही ।
ReplyDeleteI have been goading Shibesh to get into writing full time but to no avail. Looks like he still has EMIs to pay. Initially, into his first few posts, I thought he was an off-the-shelf Bengali bhadralok predictably nostalgic about his personal history deep buried by the compulsions of today's world. Happy that I am wrong. He is hopeful despite the predicament we all find ourselves in. Never to let go of the quintessential "subah".
ReplyDeleteLook forward to your next post, Shibesh.
Har raat ki subah hoti hai dada...yeh kaali andheri raat bhi bhaut jaldi khatam hogi
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