Sunday 12 June 2022

गुस्सा - तीन पीढ़ी का

पहली पीढ़ी 

तू  मुझसे  क्यों  नाराज़  है  बेटा 

उम्र  हो  गयी  है  मेरी 

गलती  कर  बैठती  हूँ  मैं बेटा

दवाई  खाना  भी भूल  जाती  हूँ 

कभी  कपड़ों को गन्दा  कर देती  हूँ 

टीवी  का  चैनल  बदलने  में  आलस  आता  है 

इसी  लिए  तुझे  बुला  लेती  हूँ  बेटा 

इसी  बहाने  तुझसे  थोड़ी  मुलाकात  हो  जाती  है 

मैं  जानती  हूँ  की  बहुत  सताती  हूँ  तुझे मैं 

पर  अब  दिन  ही  कितने  रह  गए  मेरे 

अस्सी  अब  पार  करने  वाली  हूँ 

जब  न  रहूंगी, तू  किसपे  गुस्सा  करेगा  बेटा 

याद  तुझे  मैं  आउंगी 

रोता  तुझे  मैं  पाऊँगी 

खुद  को  कोसेगा  की  क्यों  गुस्सा  किया  करता था  मैं 

आज अगर  तू  गुस्सा  थूक डालेगा 

प्यार  मुझसे  तू  और  बढ़ाएगा 

खुश  तुझको  मैं  पाऊँगी 

अच्छी  यादों  में  खोया  पाऊँगी 

गुस्सा  न  कर  मुझपे  बेटा

आ  बैठ  मेरे  पास तू 

दोनों दो  बातें  कहें इक दूजे से 

दोनों दो  बातें  सुने इक दूजे की 

एक  साथ  हँसे  ज़ोर  से  

एक  बार  नहीं , बार  बार 

गुस्सा  ना कर  मुझपे  बेटा.


दूसरी पीढ़ी 

तू  मुझसे  क्यों  नाराज़  है  दिलबर 

उम्र  बढ़ती  जा  रही  है  मेरी 

गलती  पे गलती कर  बैठता  हूँ  दिलबर 

कभी  चाबी  खो  जाती  है  मुझसे 

कभी  बिल  भरना  भूल  जाता  हूँ 

कभी  मेथी  की  जगह  सरसों  का  साग  ले  आता  हूँ 

और जाने क्या क्या कर जाता हूँ 

क्या  करूँ  गलती  मेरा  दूजा  नाम  जो  ठहरा 

तेरी  सूरत  देख  के  समझ  जाता  हूँ 

की  मैंने  फिर  कोई  भूल  कर  दी  है 

अब छोड़ ना  गुस्सा  दिलबर 

अब  ना  तेरी  माँ  है , ना  मेरी 

कल  अपना  भी  टाइम  आएगा 

याद  तुझे  मैं  आऊंगा 

तब  सोचेगी , शायद  रोयेगी 

बंदा  बुरा  ना  था …शायद  अच्छा  ही  था 

थोड़ा  कम  चिल्लाती , थोड़ा  कम  रूठती 

थोड़ी  सी  मिठास बढ़ाती  ….हाय ! 

तो आज  फिर  काहे  का  गुस्सा , काहे  की  नाराज़गी 

गुस्सा  ना  कर  मुझ  पे  दिलबर 

आ  बैठ  मेरे  पास  तू

दो  मीठी  बातें  आज  कर  लें हम संग 

मुस्कुराते हुए दो  बातें  सुन  एक दूजे  की 

एक  साथ  हँसे  ज़ोर  से  

एक  बार  नहीं , बार  बार 

गुस्सा  ना  कर  मुझ  पे  दिलबर.


तीसरी पीढ़ी 

अरे  क्यों  मुझसे  नाराज़  रहती  हो  माँ 

बच्ची  हूँ , सीख  जाउंगी  जल्द 

गलती  कर  बैठती  हूँ  माँ 

कभी  बोतल, कभी  किताब  भूल  आती  हूँ 

कभी  घर  देर  से  लौटती   हूँ  मैं  माँ 

और  कभी  कुछ  लेने  की  हट्ट  कर  बैठती  हूँ 

क्या  करूँ  माँ , जान  के  नहीं  करती  हूँ 

तुझे  नाराज़  करने  के  लिए  भी  नहीं 

गलती  पे  गलती  हो  जाती  है  मुझसे 

अब  छोड़  ना  गुस्सा  मेरी  प्यारी  माँ 

लाडली  हूँ  मैं  तेरी 

जब  दूर  कहीं  पड़ने  चली  जाउंगी 

फिर  एक  दिन  डोली  में  चढ़ जाउंगी 

याद  तुझे  मैं  बहुत  आउंगी 

तब  सोचेगी , शायद  रोयेगी 

मेरी लाडो , मेरा  बच्चा 

थोड़ा  कम  चिल्लाती , थोड़ा  कम  हाथ उठाती  

थोड़ी  उसकी  गलतियों  पे  हंस  देती …हाय !

यादें आज  मीठी  होती  और  हम  दोनों  मुस्कुराते 

तो आज  फिर  काहे  का  गुस्सा , काहे  की  नाराज़गी  माँ 

आ बैठ  मेरे  पास  तू  प्यारी माँ 

मिलके  कोई  गीत  हम  गायें 

साथ  निकल  पड़ें किसी  नये सफर  पे 

एक  साथ  हँसे  ज़ोर  से  

एक  बार  नहीं , बार  बार 

गुस्सा  ना  कर  मुझ  पे  माँ.


सारांश 

चलो  अपनों  को  अपना  बनाएं 

छोटी मोटी गलतियों को  करें  अनदेखा 

कल  की  यादों  में  आज ही मिठास  भरें 

कोई  खेद  न  रहे,  न कोई  रहे  अनकही  बात  

कोई  रहे  न  गिला,  न कोई  शिकवा 

जो  हमारे  करीब  है, जो  आज  हमारे  साथ  है  

उन्हें  प्यार  के  धागों  में  पिरोहें 

चलो  अपनों  को और अपना  बनाएं.


SS

20 comments:

  1. What a wonderful poem sibeshda..I was so touched by the Pehla piri one...loved the summary and especially the last line...

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  2. Lagata hain kissi bhi peedi mein gussa galath hain! Wow ! Keep writing

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  3. Beautifully ..written poem with time frame of life events..

    Pyaar hai to..
    gussa bhi hai..
    thodi se ..bhool
    aur phir narazgi bhi hai...
    par samay ka chakra..sabpe bhaari...
    Jiska bhaari ..samay rehte apno se Baat kar halka kiya Jaa sakt hai....

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  4. अति उत्तम सिबेश दादा।

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  5. Feels like read something so beautiful in our mathrabasha after so long, nice read at these times.

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  6. कल  की  यादों  में  आज ही मिठास  भरें 
    If ever a Hindi poem has filled my eyes to the brim and I fight to hold back tears. Regrets are so many and yet I go on was before... This set of poems are so so powerful, filled with the truth of yesterday, the disconnect of today and the regrets of tomorrow. Amazingly sensitive. Thank you. Kabhi kisiki madad to chaahiye
    Apne aankhen kholkar apne andar ghuskar


    Kuch soch bhi Len aur badalne ki koshish karen. Thank you

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  7. Very nice Sibesh Bhai. Hindi mei bhi jabardast pakaadh hai aapki. Bahut Accha.

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  8. बेहतरीन रचना सिबेश!

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  9. Reading a Hindi writing by you for first time. & VOW is the sustained comment - for both languages.
    Suppose the family wites in Bangla too.

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  10. Superlative. Best thing is the flow without trying hard to rhyme. As sweet as Lag ja gale ke phir ye hansi raat ho na ho. Createany more.

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  11. Create many more.

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  12. Made me cry😊💐

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  13. Never knew you are so strong in Hindi. Well written! Shabash!

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  14. Sasmita Routray13 June 2022 at 10:12

    Beautiful 👌

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  15. भाव बहुत प्यारे हैं... सारांश 🙏

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  16. अति अंदर रचना!

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