Saturday 29 December 2018

खुला बक्सा

उस दिन जब खोला हमने वो बक्सा
पुरानी चीज़ो को कम करने को था मन
निकला उस में से कुछ तुम्हारा सामान
सामान से जुडी थी यादें
और यादों में बसी थी तुम
जाने क्यों आखें हुई नम
और दिल गया थम


माँ तेरा वह बटुवा मिला
बटुवे में थी एक डायरी
जिसमें पाया तेरे हाथों से लिखे कुछ नाम 
तेरे बनाए हुए रिश्ते
जिन्हें भुला चुके हैं हम
खो गए बस तेरी तरह जाने कहाँ
सोचता हूँ फिर एक बार
कुछ तेरे उन डायरी में लिखे लोगों से जा मिलूं 
शायद मुझे तू वहीँ पे जा मिले
तुझसे मिलने को आज बहुत जी चाहता है

बटुवे में मिला एक छोटा सा आईना
शायद तुम उससे अपनी लाल बड़ी सी बिंदी
माथे पर ठीक किया करती थी
या अपना कॉम्पैक्ट निकालकर अपने को संवरती
आज वह आईना धुंधला सा गया है
ढूंढ़ता हूँ तुझे उसमें मैं
आईने के हर कोने से तुझे झाकते पाया
शायद मुझसे तू कुछ कहना चाहती हैं
तुझसे मिलने को आज बहुत जी चाहता है

बक्से के एक कोने में मिले एक प्लास्टिक का पैकेट
और उस में मिला एक छोटा डिब्बा 
डिब्बा पे लिखा था 'रवि सादी पत्ती'
और था सुपारी काटने वाला चमचमाता हुआ औज़ार 
तूने माँ पान खाना तो छोड़ दिया था अर्सो पहले
पर तम्बाकू चूने के साथ मुँह में खैनी रखना कभी छोड़ा
डॉक्टर के कितनी बार मना करने पर भी
मैं तेरा एक डिब्बा ख़तम होने से पहले दूसरा ले आता था
अब ना पान है ना ज़र्दे की महक
ना आज तू है ना तेरी वह चहक
तुझसे मिलने को आज बहुत जी चाहता है

बक्से से तेरी कुछ साड़ियां भी निकली माँ
वह साड़ियां जो तुम्हें पसंद थी
उनमें वह सफ़ेद साडी भी थी माँ
जिसमें लाल काला बड़ा बॉर्डर था
और बॉर्डर पे बने सुन्दर डिज़ाइन
मिला तेरा वह खादी का चद्दर और वूल का मफलर भी
आज भी तेरे प्यार की गर्माहट को महसूस कर पाया इनमें
तुझसे मिलने को आज बहुत जी चाहता है

कुछ नये मोज़े मिले जो कभी पहने तूने
समेट कर रखती थी तुम हर चीज़
यह सोच के कि किसी बड़े दिन  पहनोगी शायद
क्यों करती थी तुम ऐसा
पहन लिया होता तो आज ना मिलती तुम
तेरी याद सताती मुझे
तेरी याद रुलाती मुझे
मैं भी अक्सर नई चीज़ें संभाल के रख देता हूँ अर्सो तक
शायद मुझमें तू छिपी हुई है आज भी कहीं 
तुझसे मिलने को आज बहुत जी चाहता है

मिले कुछ नोट और कुछ सिक्के
सिक्के थे पांच दस पच्चीस वाले
जो अब चलते नहीं हैं
नोट थे पांच रूपए वाले
एक बार सोचा की रख दूँ इन्हें संभाल के
तेरी दी हुई आखरी बक्शीश समझके
पर फिर सोचा की कहीं इन नोटों पर कल कोई रोक लगा देगा
तो वे फ़िज़ूल कागज़ के टुकड़े बनके रह जायेंगे 
और सच पूछो तो
तुझे याद करने के लिए मुझे इन चीज़ों की ज़रुरत पड़े अगर
तो लानत है मुझपे 
यादों में तुझे ढूंढ लेता हूँ अक्सर
कभी भी कहीं भी
आज तुझसे मिलके जी नाच उठा है

ढूंढती होगी तुम मुझे कहीं
ढूंढता हूँ तुझे मैं आज भी यहीं
शायद कुछ तुझसे कहना चाहता हूँ
शायद कुछ माफ़ी मांगना चाहता हूँ
कुछ खुशियां बांटनी थी तुझसे
कुछ ज़ख्म दिखाने थे तुझे
सब कहूँगा सब सुनूंगा फिर कभी
आज बस इतना ही
बक्से को अब बंद करता हूँ
मिलती रहना तुम
कभी भी कहीं भी

SS

11 comments:

  1. क्या बात क्या बात ,
    कैसे तारीफ करें 
    समझ नहीं आता 
    शब्दों की महफिल में
    आपकी तारीफ लायक 
    कोई शब्द नजर नहीं आता।
    वाह! क्या लिखा है!, बढ़िया लिखा है!

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  2. Excellent and so true.
    As you open these old boxes memories come oozing out.
    You can relate each of the items with the person.
    I have had so many occasions to open such old boxes " Boxes of treasure" so to say.
    Every time you opened such a box you almost went back in time as you pulled out one thing or the other. Memories, Reliving whatever you call it.
    Great read to start the day with.
    Made my day....

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  3. Kya Baat ! Kya Baat !! Kya Baat !!!
    So true and as usual well excellent writing... Hats off Sir

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  4. माँ की ममता माँ का प्यार
    जिसपे टिका है सारा संसार

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  5. Bahut khoob sir as usual, EK bakse se Puri zindagi Bayaan kar di aapne and so true and heart touching.

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  6. How I wish I could do this magic with simple words, kaash hum bhi iss tarah soch paathe..

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