Sunday 24 July 2022

डरपोक कहीं का


उस दिन सुबह हुई तो देखा बाहर बारिश हो रही है 

हर दिन की तरह दफ्तर जाने की तैयारी में जुट गया मैं

नहा -धो के , इस्तिरी किये हुए कपड़े पहन , नाश्ता किया 

घर से निकलने से पहले एक बार खिड़की से बहार झाँकने गया 

यह देखने की कहीं  बारिश कुछ कम हुई या नहीं

मुंबई की बारिश है जनाब , इतनी जल्दी कम नहीं होती

पहले बारिश को कोस रहा था की दफ्तर के रास्तों में जाम लग जायेगा

फिर जाने क्यों बारिश को थोड़ा निहारने लगा

तभी अचानक एक लड़का मेरी अपनी खिड़की से बहार कूद गया

जाने कहाँ से आया था वो?

तेज़ बारिश में खड़े होकर और भीगते हुए उसने मुझे इशारा किया …

बाहर आओ और खेलो मेरे साथ

मैंने हाथ को सर की तरफ इशारा करते हुए कहा …पागल है क्या ?

इतनी  बारिश में बाहर? अभी मुझे दफ्तर जाना है , काम करना है

अब उस लड़के ने ज़ोर से दस्तक दी … बहुत मज़्ज़ा आएगा …बाहर आके तो देखो

पागल है क्या ? इन  साफ़ –सुतरे कपड़ों में मैं नहीं आ सकता और दफ्तर में बहुत काम है

अब उस लड़के ने एक पत्थर मेरी तरफ फेंका और बोला …. डरपोक कहीं का!

मैं और डरपोक … कभी नहीं … अभी आता हूँ तुझे सबक सिखाने 

बस फिर क्या था , मैं उन्ही कपड़ों में दरवाज़ा खोल, बाहर निकल गया

न छतरी, न रेनकोट …मैं उस की ललकार सुनके मुसलाधार बारिश में निकल पड़ा

अब दिखाता हूँ तुझे …डरपोक बोला तूने किस को

मैं उस लड़के की तरफ आगे बड़ा  और जैसे ही पास पहुंचा

वह ज़ोर ज़ोर से मट्टी में पड़े  कीचड़ में कूदने लगा

कीचड़ छिड़कने लगा और मेरे कपड़े  जो अब तक गीले थे , अब मैले भी हो गए

गुस्सा छोड़ो और मेरी तरह एक बार कूदके तो देखो

मुझे जाने क्या हो गया और मैं भी एक बार कूदा

और फिर कूदता ही गया … जाने क्यों

मेरा गुस्सा अब शांत हो गया था 

अब मैं उस लड़के की नक़ल करने लगा

लड़का अब  एक पेड़ की ओर चलने लगा …वो आगे आगे , मैं पीछे- पीछे

उसने नीचे पड़े दो जामुन उठा लिए और एक मुझे दे दिया

बिना साफ़ किये , मैंने जामुन को मुँह में ढाल दिया …बहुत अच्छा लगा

एक से दो और दो से चार जामुन खाता  चला गया

अब वो लड़का जामुन के पेड़ पे चढ़ने लगा

और मैं उसके पीछे पीछे …

थोड़ी देर में उस लड़के ने पेड़ पे दो रस्सियां लगा दी और झूला बना दिया

मैं उसको ढकेलता बारी बारी … हर बार कुछ ज़्यादा ज़ोर से

लड़का बहुत खुश होता और चीख  लगाता मेरे हर धक्के पे

नीचे काफी पानी जमा हो गया था और हम उसपे चलने लगे

कुछ गाड़ियां  पास से गुज़री और हम पर पानी के छोटे सैलाब छिड़कते  चले  गए 

पानी बहुत मैला था , पर हम को कोई फ़िक्र न थी

अब उस लड़के ने एक छोटा लोहे का सरिया अपने पिटारे से निकला

और मट्टी में फेंकता हुआ , गाढ़ता   हुआ आगे चला गया 

मैं वहीँ खड़ा रहा … कुछ देर में वो  मेरे पास आया और इशारा किया

मुझे अपने कंधे पर उठाओ और जहाँ मेरा सरिया अभी पड़ा है , वहां तक ले चलो

मैं नीचे झुका और वो  छलांग मार मेरी पीठ पे चढ़ बैठा

पानी घुटनों तक था और मैं चलता रहा उसको पीठ पे बिठाये

सरिये के पास पहुंचा और उसको नीचे उतार दिया

अब मैंने सरिया उठया और मट्टी में गाढ़ता हुआ आगे निकल गया

उस लड़के को अब इशारा किया …अब तू मुझे अपनी पीठ पे उठा 

हम दोनों ज़ोर से हंसने लगे और हँसते हँसते ज़मीन में बैठ गए

और फिर वहीँ पे लेट गए … हँसते हँसते

अब बारिश कुछ धीमी हो गयी थी

मैंने अपनी घड़ी को देखा …वह भी मुई मज़े ले रही थी

उसने भी भीगते हुए चलना बंद कर दिया था  

अच्छा लग रहा था

बारिश …भीगना …खेलना …हंसना

ज़िन्दगी की भेड़ –चाल में सब भूल सा गया था शायद

नज़र उठाके देखा तो वो लड़का कहीं भाग गया था

दिखाई नहीं दे रहा था

मैं उठ खड़ा हुआ और घर की तरफ चल पड़ा

हलकी बारिश में मेरी कमीज़ जो मैली हो गयी थी

बरसते पानी से अपने आप ही धुल सी गयी और साफ़ हो गयी

मैंने सोचा की क्या यह बारिश मेरे मन का मैल भी धो पायेगी ?

बरसों की गाढ़ी मैल है …वो शायद ना धो पायेगी यह बारिश

क्या यह बारिश मेरी ज़िन्दगी में पड़े ज़ंग को धो पायेगी ?

बरसों की गाढ़ी ज़ंग है … वो भी शायद ना धो पायेगी यह बारिश

फिर मैं घर वापस लौट आया और ज़ोर से बीवी को आवाज़ लगायी

आज मैं दफ्तर नहीं जाऊंगा

वह मुझे देख के  चिंता में पड़ गयी

इसको आज क्या हो गया ?

आपकी तबियत ख़राब है क्या … क्यों नहीं जायेंगे दफ्तर ?

नहीं जाऊंगा बस …आज  'rainy day' है

आज घर पे रहूँगा तुम्हारे साथ

चाय- पकोड़ी खाऊंगा और बारिश का मज़ा लूँगा

लो …फ़ोन को भी स्विच ऑफ कर दिया

और लैपटॉप को भी किया बंद

आज  rainy day है …सब कुछ बंद

ज़िन्दगी शुरू!


SS


8 comments:

  1. बहुत खूब आपकी कहानी सुनकर मेरे अंदर का बचपन जाग ऊठा कही कोई बच्चा तो नही बुला रहा है बारिश में खेलने और आज ऑफिस की छूटी लेता काश.....

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  2. Yes! We need to forget our daily chores, from time to time, and listen to the little child beckoning us... The beauty of abandonment very well captured, Sibesh!

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  3. नाम की अभिलाषा और बचपन की सहज खुशियों का पिटारा ही खोल दिया। सुंदर और सहज ललकार हम सभी डरपोक लोगों को❤️👍🌹

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  4. मन की अभिलाषा

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  5. An eye opener read for people who run behind the daily chores.

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  6. Very nice 😊

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  7. वाह जनाब वाह। ख्वाहिश हो तो ऐसी। बारिश का सुहाना मौसम, और पकौड़े का लुत्फ, दफ्तर से छुट्टी, जब मन करे। वो भी क्या दिन थे, जब ये संभव था। बरसात में भीगने का आनंद, न सर्दी की चिंता, न बुखार का डर।

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  8. Returning to childhood. To innocence. That guy always stays within. Sujit.

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